मानसखण्ड विज्ञान केंद्र, अल्मोड़ा ने एक पहल करते हुए रिमोट सेंसिंग एवं जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (GIS) पर आधारित 15 दिवसीय प्रमाण पत्र प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ किया

यूकॉस्ट और एसएसजे विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में 15 दिवसीय रिमोट सेंसिंग और जी0आई0एस प्रशिक्षण प्रारंभ
अल्मोड़ा, 10 जून 2025 उत्तराखंड के युवाओं को नवीनतम तकनीकी दक्षताओं से लैस करने की दिशा में मानसखण्ड विज्ञान केंद्र, अल्मोड़ा ने एक उल्लेखनीय पहल करते हुए रिमोट सेंसिंग एवं जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (GIS) पर आधारित 15 दिवसीय प्रमाण पत्र प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ किया।
इस कार्यशाला का उद्देश्य राज्य भर से चयनित युवाओं, शोधार्थियों एवं तकनीकी विशेषज्ञों को इन उन्नत तकनीकों का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान कर, उन्हें वर्तमान वैज्ञानिक युग की माँगों के अनुरूप तैयार करना है। इस विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम में उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से आए 15 प्रतिभागी सम्मिलित हो रहे हैं, जो कि विज्ञान और तकनीकी नवाचारों में रुचि रखने वाले युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

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कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत करते हुए डॉ. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि, रिमोट सेंसिंग और GIS आज केवल शोध की सीमाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह तकनीकें जल स्रोतों की निगरानी, वन प्रबंधन, शहरी नियोजन, आपदा प्रबंधन और कृषि सुधार जैसे कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इस कार्यशाला के माध्यम से प्रतिभागियों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ अत्यंत व्यावहारिक एवं क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में उपयोग की दृष्टि से प्रशिक्षित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह प्रयास उत्तराखंड के ग्रामीण और पर्वतीय युवाओं को मुख्यधारा की तकनीकी दुनिया से जोड़ने में सहायक सिद्ध होगा।

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डॉ. नेगी ने अपने संबोधन में कहा कि, जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी असंतुलन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण जैसे ज्वलंत विषयों से निपटने के लिए हमें रिमोट सेंसिंग और GIS जैसी तकनीकों को स्थानीय संदर्भों में अपनाना होगा। उन्होंने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे इस प्रशिक्षण को केवल तकनीकी ज्ञान तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपने समुदायों और क्षेत्रीय विकास के लिए उपयोग करें। GIS विशेषज्ञ और यूकॉस्ट के सलाहकार प्रो. जे. एस. रावत ने कार्यशाला की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा, उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य में भूमि उपयोग परिवर्तन, आपदा जोखिम मूल्यांकन और संसाधन नियोजन के लिए रिमोट सेंसिंग और GIS की भूमिका अनिवार्य होती जा रही है।

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ऐसे कार्यक्रम युवाओं को वैज्ञानिक सोच और स्थान-आधारित विश्लेषणात्मक क्षमता से सुसज्जित करते हैं। उन्होंने कहा कि यूकॉस्ट भविष्य में भी इस प्रकार के तकनीकी कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता रहेगा। यूकॉस्ट, देहरादून के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत ने वर्चुअल माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आयोजकों को इस प्रासंगिक एवं गुणवत्तापूर्ण कार्यशाला के आयोजन के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा, मानसखण्ड विज्ञान केंद्र और एसएसजे विश्वविद्यालय का यह संयुक्त प्रयास राज्य में विज्ञान आधारित क्षमताओं के निर्माण की दिशा में एक अनुकरणीय उदाहरण है। हमें ऐसे तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों की निरंतरता बनाए रखनी चाहिए ताकि राज्य के युवाओं को रोजगारोन्मुखी कौशल सुलभ हो सके।

उन्होंने प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देते हुए आग्रह किया कि वे इस ज्ञान को क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान में उपयोग करें।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट ने कार्यशाला को अत्यंत सामयिक बताते हुए कहा, “उत्तराखंड जैसे जैव-विविधता से परिपूर्ण और भौगोलिक रूप से संवेदनशील राज्य के लिए GIS और रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीकें एक सशक्त उपकरण बनकर उभर रही हैं। चाहे वह हिमनदों की निगरानी हो, जलवायु परिवर्तन का आकलन, या फिर आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली—इन सभी क्षेत्रों में इन तकनीकों की विशेष उपयोगिता है।

उन्होंने आगे यह बताया कि भविष्य में इस तरह के कोर्स चलाये जायेंगे एवं इस प्रशिक्षण कार्यशाला में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को एसएसजे विश्वविद्यालय द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे, जो उनकी अकादमिक और व्यावसायिक मान्यता को बढ़ावा देंगे। उन्होंने प्रतिभागियों से विज्ञान की इस निरंतर बदलती दुनिया में आत्मविश्वास से आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
इस विशेष अवसर पर ‘मानस वाणी’, मानसखण्ड विज्ञान केंद्र की पहली त्रैमासिक ई-पत्रिका का भव्य विमोचन भी किया गया। यह पत्रिका न केवल विज्ञान केंद्र की गतिविधियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करेगी, बल्कि उत्तराखंड राज्य में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधान एवं नवाचार को भी उजागर करेगी।

अगले पंद्रह दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को रिमोट सेंसिंग तकनीक, GIS सॉफ्टवेयर (जैसे QGIS/ArcGIS), जियोडेटा का विश्लेषण, सैटेलाइट इमेज प्रोसेसिंग, मैपिंग तकनीक, लैंडयूज़/लैंडकवर विश्लेषण, तथा डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) आधारित अध्ययन जैसे विविध विषयों पर गहन प्रशिक्षण दिया जाएगा। कार्यशाला में व्याख्यान, प्रायोगिक अभ्यास, क्षेत्र भ्रमण और परियोजना कार्य के समावेश से प्रतिभागियों को वास्तविक परिदृश्य में तकनीकों के अनुप्रयोग की समझ विकसित की जाएगी।

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