कांडा तहसील क्षेत्र का सेरी गांव आपदा की मार झेल रहा है। गांव के घाड़ी और ढोल्यूड़ा तोक में करीब 30 मकान आपदा की जद में हैं। वर्ष 2005 से घाड़ी, जबकि 2013 से ढोल्यूड़ा तोक में जमीन धंसने से घरों में दरारें पड़ चुकी हैं। करीब 80 नाली उपजाऊ जमीन में भी दरारें पड़ गई हैं। चार पेयजल स्रोत सूख चुके हैं।
प्रशासन ने 2005 की आपदा के बाद छह लोगों को अन्यत्र विस्थापित किया था। कुछ साधन संपन्न लोग आपदा प्रभावित क्षेत्र को छोड़कर अन्यत्र बस गए हैं लेकिन 18 परिवार अब भी खतरे के साए में जीवन गुजारने के लिए मजबूर हैं। ग्रामीणों का दिन तो जैसे-तैसे कट जाता है, लेकिन रातें भगवान को याद कर गुजरती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि शासन-प्रशासन गांव का निरीक्षण कर चुका है। विधायक भी गांव आकर आश्वासन दे चुके हैं। ग्रामीणों को अन्यत्र विस्थापित करने की बात कही तो जाती है लेकिन अब तक इस पर अमल नहीं हो सका है। संवाद न्यूज एजेंसी की टीम ने गांव जाकर आपदा प्रभावित क्षेत्र का जायजा लिया और प्रभावितों से बातचीत कर उनकी परेशानी को जाना।
मेरा मकान टूटने के कगार पर है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ मकान में रहने में डर लगता है। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि दूसरी जगह घर बना सकें। मजबूरी में जीवन खतरे में डालकर रहते हैं। सरकार जल्दी मदद करती तो इस डर से मुक्ति मिल जाती। पूजा देवी, ग्रामीण
गांव पिछले 20 साल से आपदा की जद में है। प्रभावित इलाकों में सर्दी और गर्मी के दिन तो किसी तरह से कट जाते हैं। मानसून काल में डर का माहौल बना रहता है। घरों की दरारों से पानी भीतर आने लगता है। लोग डर के मारे रात को सो नहीं पाते, बार-बार बाहर निकलकर मकान को देखना पड़ता है। विस्थापन के सिर्फ आश्वासन ही मिल रहे हैं।
राजू धामी, ग्रामीण