भाकृअनुप & वीपीकेएएस के निदेशक, डॉ0 लक्ष्मी कान्त को भारतीय पादप आनुवंशिक संसाधन सोसाइटी,आईएसपीजीआर, नई दिल्ली द्वारा प्रतिष्ठित डॉ0 बी0 आर बारवाले पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार 23 अक्टूबर 2024 को आईसीएआर आरसीएनईएच, उमियम, शिलांग में आयोजित “पूर्वोत्तर भारत में कृषि जैवविविधता प्रबंधन” एनसीएमएएन पर राष्ट्रीय सम्मेलन 23&25 अक्टूबर 2024 के उद्घाटन समारोह के दौरान प्रदान किया गया।
डॉ0 लक्ष्मी कान्त को यह सम्मान मेघालय के माननीय राज्यपाल सी0 एच0 विजयशंकर जी के करकमलों द्वारा प्रदान किया गया। इस अवसर पर पद्म भूषण डॉ0 आर0 एस0 परोदा, पूर्व सचिव डीएआरई और महानिदेशक आईसीएआर, डॉ0 टी0 महापात्र, अध्यक्ष,पादप किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण ¼ पीपीवीएफआरए), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, डॉ0 संजय कुमार0 अध्यक्ष, एएसआरबी,डेयर नई दिल्ली डॉ0 बजत बरुआ,पूर्व डीडीजी एएस,आईसीएआर तथा अन्य विशिष्ट गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
आईसीएआर-वीपीकेएएस के समस्त कर्मचारियों ने डॉ0 लक्ष्मी कान्त को पादप आनुवंशिक संसाधन ¼पीजीआर) के क्षेत्र में उनके समर्पण और योगदान हेतु उन्हें प्राप्त इस उत्कृष्ट उपलब्धि पर बधाई दी।
सन् 2017 में स्थापित] डॉ0 बी0 आर0 बारवाले पुरस्कार को पादप आनुवंशिक संसाधन (पीजीआर) विज्ञान या अनुप्रयोग में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को सम्मानित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। इसमें पीजीआर के संग्रह] चरित्रकरण] मूल्यांकन] संरक्षण और उपयोग] जैसे कि नई किस्मों के विकास और पीजीआर प्रबंधन में अन्य प्रगति शामिल है। इस पुरस्कार का उद्देश्य पीजीआर क्षेत्र में मध्यम स्तर के वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करना है।
डॉ0 कान्त ने लगभग 3,454 शीतकालीन और अर्ध-शीतकालीन गेहूं के जर्मप्लाज्म का रख&रखाव और मूल्यांकन किया (जो देश में सबसे अधिक है)। अब तक उन्होंने 20 उच्च उपज देने वाली रतुआ प्रतिरोधी किस्में विकसित की हैं] जिनमें 15 गेहूं की और 5 जौ की हैं] जो किसानों के खेतों में औसतन 30&40 प्रतिशत तक उत्पादकता बढ़ाने की क्षमता दर्शाती हैं। इनमें दोहरे उपयोग वाली गेहूं की किस्म ¼ हरा चारा और अनाज दोनों के लिए) ने संस्थान को विशेष पहचान दिलाई है। इसके अलावा देर से बोई जाने वाली किस्म वीएल गेहूं 892 और समय पर बोई जाने वाली किस्म वीएल गेहूं 907 इस क्षेत्र में सबसे प्रमुख और लोकप्रिय किस्में हैं और अब भी राष्ट्रीय परीक्षण में चैक रूप में इस्तेमाल हो रही हैं।
उन्होंने 9 जैनेटिक स्टाक भी पंजीकृत किये हैं। वीएल कुकीज़ नामक नवीनतम किस्म जो बिस्किट बनाने के लिए देश में सबसे उपयुक्त है] उनकी टीम द्वारा विकसित की गई है। उन्होंने 2 नए पीले रतुआ प्रतिरोधी जीन Yr66 और Yr77 की पहचान में भी योगदान दिया है। डॉ0 कान्त ने कुल 93 शोध पत्र समीक्षित जर्नल्स में प्रकाशित किए हैं] जिनमें शीतकालीन गेहूं के जर्मप्लाज्म के उपयोग द्वारा वसंतकालीन गेहूं में सुधार पर आधारित शोध शामिल भी हैं।