मैं देश की सरहद पर खड़ा हूं लेकिन अपने ही घर के चिराग को सिस्टम की बेरुखी से नहीं बचा पाया। यह दर्द है उस सैनिक का जिसने अपने डेढ़ साल के बेटे को सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि एक अस्पताल से दूसरे तक रेफर करते-करते लचर सरकारी स्वास्थ्य तंत्र ने कीमती समय गंवा दिया। गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक के डॉक्टरों ने हायर सेंटर के नाम पर अपनी जिम्मेदारी से हाथ खींच लिया। शुभांशु अब इस दुनिया में नहीं है।
गढ़वाल मंडल के सुदूर चमोली जिले के चिडंगा गांव के निवासी और वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में तैनात सैनिक दिनेश चंद्र के लिए जुलाई की रात कभी न भूलने वाली बन गई। दोपहर बाद उनके डेढ़ साल के बेटे शुभांशु जोशी की अचानक तबीयत बिगड़ने लगी। मां और पत्नी उसे लेकर ग्वालदम अस्पताल पहुंचीं लेकिन वहां इलाज नहीं मिल सका। वहां से बच्चे को कुमाऊं मंडल के बैजनाथ अस्पताल और फिर बागेश्वर के लिए रेफर कर दिया गया। कलेजे के टुकड़े को सीने से लगाए घरवाले धरती और आसमान दोनों के भगवानों से मिन्नतें करते रहे। बागेश्वर जिला अस्पताल में शाम छह बजे भर्ती बच्चे की हालत गंभीर बताते हुए डॉक्टर ने उसे हल्द्वानी रेफर कर दिया। लगभग चार घंटे में पांच अस्पताल अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सके।
बागेश्वर में जब परिजनों ने 108 पर एंबुलेंस के लिए कॉल किया तो मिला सिर्फ आश्वासन। लगभग एक घंटा बीत गया। बच्चा तड़प रहा था और एंबुलेंस का कोई पता नहीं था। आखिरकार फौजी पिता ने खुद जिलाधिकारी को फोन कर मदद मांगी। डीएम के आदेश पर रात साढ़े नौ बजे एक एंबुलेंस तो मिली लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अल्मोड़ा से हल्द्वानी ले जाते वक्त शुभांशु की सांसें टूट गईं। वह मासूम अब कभी नहीं लाैटेगा। अधिकारियों ने इस मामले का संज्ञान लेने की बात कही है। अथाह पीड़ा से गुजर रहे परिजनों का कहना है कि अब किसी जांच से क्या होगा जब जिंदगी ही चली गई।
बच्चे को एक के बाद एक पांच अस्पतालों में रेफर किया गया। यह दर्शाता है कि स्थानीय सरकारी अस्पताल सक्षम नहीं है? आखिर प्राथमिक इलाज देने में भी डॉक्टर इतने असहाय क्यों?
-एक मासूम की जान उस एंबुलेंस के इंतजार में चली गई तो कौन जिम्मेदार है? इमरजेंसी की स्थिति में इसका विकल्प क्यों तैयार नहीं रहता?
-फौजी पिता का दावा है कि इमरजेंसी में सहयोग नहीं किया गया और अभद्रता भी की गई। अस्पताल स्टाफ की संवेदनहीनता और व्यवहार पर कोई निगरानी क्यों नहीं?
-सीएमएस का कहना है कि आधे घंटे में अगर 108 नहीं पहुंचती तो उनकी एंबुलेंस भेजी जाती है। सवाल है कि उस दिन क्यों नहीं भेजी गई?
-अगर डीएम को फोन न किया गया होता तो शायद बच्चे को एंबुलेंस भी नसीब नहीं होती। क्या जिलाधिकारी के आदेश के बिना कोई सेवा समय पर नहीं मिल सकती?