एक देश-एक चुनाव विधेयक में किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने और किसी का भी बहुत न होने की स्थिति में जर्मन और जापान मॉडल को अपनाने पर भी विचार किया जा रहा है।एक देश-एक चुनाव के लिए प्रस्तुत विधेयक में सभी चुनाव एक साथ कराने पर जोर दिया गया है। इसमें इस पर भी ध्यान दिया गया है कि यदि कोई सरकार मध्यावधि में ही गिर जाती है तो फिर क्या होगा।
एक देश-एक चुनाव के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने बताया कि इसके लिए कई बिंदुओं का उल्लेख किया गया है। व्यवस्था यह रखी गई है कि मध्यावधि चुनाव होने की स्थिति में नई सरकार का कार्यकाल पुरानी सरकार की शेष बची अवधि के लिए होगा, ताकि सारे चुनाव एक साथ हो सकें।
एक विचार यह भी चल रहा है कि यदि कोई सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रकट करता है तो उसे दो प्रस्ताव लाने होंगे, जिसमें एक प्रस्ताव अविश्वास का और दूसरा प्रस्ताव यह होगा कि उसे किस पर विश्वास है। उन्होंने कहा कि दूसरा विचार इस पर चल रहा है कि यदि किसी सरकार की समयावधि कम रह जाती है तो सदन ही अपने बीच से किसी नेता सदन का चयन कर ले, जो शेष अवधि के लिए सरकार चलाए। यद्यपि अभी यह विचार के स्तर पर ही है।
संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष ने कहा कि सिविल सोसायटी से बातचीत के दौरान यह बात सामने आई कि अप्रैल- मई यहां पर्यटन का पीक सीजन होते हैं। ऐसे में इस अवधि में चुनाव कराने से पर्यटन प्रभावित हो सकता है। कारण, इस दौरान सभी चुनावों में व्यस्त रहेंगे।ऐसे में अलग-अलग चुनाव होने से पर्यटन प्रभावित हो सकता है। साथ ही बार-बार चुनाव होने से यहां शिक्षकों की ड्यूटी चुनाव में लगने और स्कूलों में पोलिंग बूथ बनने से पठन-पाठन का कार्य भी प्रभावित होता है। मौसम भी चुनाव को प्रभावित करता है।उन्होंने कहा कि देश में 4.85 करोड़ मजदूर ऐेसे हैं जो दूसरे राज्यों में काम करते हैं। ऐसे में बार-बार चुनाव के दौरान उन्हें अपने राज्यों में जाना पड़ता है। इससे उद्योग भी प्रभावित होते हंै। इन्हीं सब बातों को देखते हुए इस विषय पर अभिभावकों, व्यापारियों सहित सभी वर्गों से बात करने को कहा गया है।
समिति के अध्यक्ष ने एक सवाल के जवाब में कहा कि बार-बार चुनाव होने से इसका असर मतदान प्रतिशत पर भी नजर आता है। एक साथ चुनाव होने से यह प्रतिशत बढ़ सकता है। समिति के अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है। समिति में जितने भी सदस्य हैं सब अलग-अलग राजनीतिक दलों से हैं। संसद के भीतर उनकी जो भी भूमिका हो, लेकिन समिति के सदस्य के रूप में सभी संसदीय परंपराओं के अनुसार कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो भी दिक्कत बताई जा रही है, समिति उसका समाधान निकालने का प्रयास कर रही है।