विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत पर्वतीय किसानों से सीधा संवाद, वैज्ञानिक तकनीकों को लेकर नई उम्मीदें

भाकृअनुप–विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के निदेशक डॉ. लक्ष्मीकांत के कुशल मार्गदर्शन में संचालित विकसित कृषि संकल्प अभियान के तेरहवें दिन, संस्थान के वैज्ञानिकों के आठ दलों ने विकासखण्ड भिकियासैंण, ताड़ीखेत, ताकुला, बागेश्वर, गरुड़, रामगढ़, कपकोट, चकराता एवं कालसी के 45 गांवों में भ्रमण कर 1054 कृषकों से सीधा संवाद स्थापित किया। इस संवाद के दौरान न केवल किसानों की स्थानीय समस्याओं, बल्कि कृषि विकास को लेकर उनके सुझावों और जरूरतों को भी समझा गया।

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कार्यक्रम के तहत आयोजित कृषक गोष्ठियों में वैज्ञानिकों ने किसानों को संस्थान द्वारा विकसित जलवायु-सहिष्णु कृषि तकनीकें, अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों, एकीकृत रोग प्रबंधन, संतुलित उर्वरक उपयोग, जैविक उत्पादों के लाभ, और प्राकृतिक खेती की विधियों की विस्तृत जानकारी प्रदान की।
किसानों ने राज्य एवं केंद्र सरकार की अनुसूचित जाति/जनजाति योजनाओं (जैसे पॉलीहाउस निर्माण आदि) को सामान्य वर्ग के लिए भी लागू करने की मांग की। इसके साथ ही, जंगली जानवरों से फसलों की सुरक्षा हेतु तारबंदी सहायता की तत्काल आवश्यकता पर भी बल दिया। डॉ. पंकज कुमार मिश्रा ने बताया कि पोषक तत्वों का समय पर उपयोग, कंपोस्ट, एवं जैव उर्वरकों के प्रयोग से मृदा स्वास्थ्य सुधरता है, जिससे टिकाऊ उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।

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डॉ. के.के. मिश्रा ने प्रमुख सब्जियों के रोग प्रबंधन, झुलसा व उकठा रोग, शिमला मिर्च में विषाणु रोग, मशरूम उत्पादन, तथा सफेद मक्खी व कुरमुला कीट नियंत्रण की जानकारी दी। डॉ. मनोज कुमार ने कदन्न थ्रेशर, मल्टी क्रॉप थ्रेशर, और अन्य कृषि यंत्रों के बारे में किसानों को अवगत कराया। डॉ. भिंडा ने उन्नत कदन्न उत्पादन तकनीकों को किसानों के साथ साझा किया। जैविक एवं प्राकृतिक खेती, मृदा परीक्षण, और संतुलित उर्वरक प्रयोग पर विशेष जोर दिया गया, जिससे फसल की गुणवत्ता, मिट्टी की उर्वरता और कृषक आय को स्थायित्व मिल सके।
कई किसानों ने बेमौसमी सब्जियों जैसे टमाटर, शिमला मिर्च आदि के उत्पादन हेतु पॉलीहाउस जैसे संरचनात्मक सहयोग की आवश्यकता जताई।

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उन्होंने तकनीकी मार्गदर्शन और बीज/रोपण सामग्री की सुलभता की मांग की। इन क्षेत्रों में मृदा कटाव की गंभीर समस्या को देखते हुए वैज्ञानिकों ने कुछ मृदाक्षरण को रोकने में सहायक घासों की प्रजातियाँ लगाने की सलाह दी जो पर्यावरण संरक्षण में सहायक होंगी। इस अभियान ने पर्वतीय कृषकों को वैज्ञानिक कृषि, सरकारी योजनाओं, तथा खेती से जुड़े नवाचारों के प्रति जागरूक और उत्साहित किया है। अभियान की नोडल अधिकारी डॉ. कुशाग्रा जोशी ने कहा कि स्थानीय समस्याओं की समझ और समाधान की दिशा में यह अभियान एक मील का पत्थर साबित हो रहा है।

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