उत्तराखंड में मतदाताओं का सबसे बड़ा वर्ग ग्रामीणों का है। पंचायत चुनाव में इस वर्ग को लुभाने के लिए ताकत झोंक रही कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट की जोड़ी तो है ही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पार्टी की चिंता बढ़ा रहे हैं।
माेदी का प्रभाव राज्य में लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव तक सीमित नहीं है। नगर निकाय चुनाव में वार्ड सदस्यों के चुनाव में मोदी कार्ड चला। अब पंचायत चुनाव में इस तिकड़ी के प्रभाव से निपटने के लिए कांग्रेस के सामने कई मोर्चे एक साथ संभालने की नौबत है। पार्टी की नैया पार लगेगी या नहीं, दिग्गज नेताओं की एकजुटता और प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति की रणनीतिक सूझबूझ पर बहुत कुछ निर्भर रहने जा रहा है।
ग्रामीण मतदाता त्रिस्तरीय पंचायतों की छोटी सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। विधानसभा चुनाव में भी उनकी बड़ी संख्या राजनीतिक दलों को सहज उनकी ओर खींचती है। प्रदेश में इन मतदाताओं की संख्या साढ़े 47 लाख से अधिक है। शहरी मतदाता संख्या में उनसे कुछ कम 30.63 लाख हैं।
पंचायतों में सरकार बनाने के लिए हो रहे चुनावी युद्ध में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। मुख्यमंत्री धामी गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में लगातार सक्रिय हैं। भाजपा की कमान लगातार दूसरी बार महेंद्र भट्ट के हाथों में आ गई। धामी और भट्ट की जुगलबंदी ने गत वर्ष लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में जीत दिलाई। विगत जनवरी माह में नगर निकाय चुनाव में सभी 11 नगर निगम भाजपा की झोली में आ गए।
भाजपा के लिए राहत यह है कि लोकसभा और विधानसभा के बड़े चुनावों के साथ नगर निकाय चुनाव में पीएम मोदी के रूप में ब्रांड सुपरहिट रहा है। वार्डों में पार्टी प्रत्याशियों ने मोदी के नाम पर वोट भी मांगे और सफलता भी पाई। अब पंचायतों में भी भाजपा अपने इसी अचूक हथियार के साथ मैदान में है। धामी की सक्रियता, भट्ट का कार्यकर्ताओं से सहज समन्वय और मोदी के चेहरे का पंचायत चुनाव पर असर नहीं दिखे, कांग्रेस इन बिंदुओं को केंद्र में रखकर अपनी तैयारी कर रही है।