आज गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के स्थापना दिवस एवं पंडित पंत की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। मुख्य अतिथि केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा ने संस्थान की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए वैज्ञानिकों से पहाड़ में वनाग्नि की रोकथाम के लिए कार्ययोजना बनाने पर जोर दिया।
कश्मीर विश्वविद्यालय श्रीनगर के वरिष्ठ प्रोफेसर जफ़र अहमद रेशी ने कहा है कि हिमालय के दुर्लभ प्रजातियों के प्रबंधन पर हिमालय के प्रहरियों को विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा और यह याद रखना होगा कि हिमालय के बिना हमारा अस्तित्व नहीं है। प्रो. रेशी आज गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के स्थापना दिवस एवं पंडित पंत की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।
संस्थान की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए वैज्ञानिकों से पहाड़ में वनाग्नि की रोकथाम के लिए कार्ययोजना बनाने पर जोर दिया।संस्थान में आयोजित 30वां पंडित गोविन्द बल्लभ पंत स्मारक व्याख्यान के मुख्य वक्ता प्रोफेसर जफ़र अहमद रेशी ने ‘पर्वतों के प्रहरी: हिमालय की उच्चभूमि में आक्रमणकारी वनस्पतियों से संघर्ष’ विषयक व्याख्यान विस्तार से प्रस्तुत किया। उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न आक्रामक विदेशी प्रजातियों के बारे में विस्तार से समझाते हुए कहा कि इन विदेशी आक्रामक प्रजातियों ने हिमालयी क्षेत्रों में पायी जाने वाली महत्वपूर्ण और दुर्लभ प्रजातियों को समाप्त कर दिया या समाप्ति की कगार पर पहुंचा दिया।
जिनके समाधान के लिए हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले सभी को एकजुट होकर आगे आने की जरूरत है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिमालय के बिना हमारा अस्तित्व नहीं है। इस बात को ध्यान में रखते हुए हिमालय से जुड़े सभी हितधारकों को नीतिगत समाधान करने के लिए प्रजातियों के प्रबंधन की दिशा में अपना ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। व्याख्यान के माध्यम से प्रोफेसर रेशी ने बताया कि विश्व में लगभग 37000 आक्रामक प्रजातियां हैं और प्रतिवर्ष 200 प्रजातियां बढ़ती जा रही हैं। इससे पहले संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आईडी भट्ट ने प्रोफेसर जफ़र अहमद रेशी का परिचय देते हुए उनके शोध कार्यों के बारे में बताया।
इससे पहले पंडित गोविंद बल्लभ पंत की जयंती एवं संस्थान के स्थापना दिवस समारोह का शुभारंभ अतिथियों ने पंडित पंत की मूर्ति पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ किया। तत्पश्चात संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल ने अतिथियों एवं उपस्थित जनों को संस्थान व उसकी शाखाओं द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में हो रहे विभिन्न शोध और विकासात्मक कार्यों से अवगत कराया। उन्होंने संस्थान की प्रगति आख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि विगत वर्षों में संस्थान नें जैव विविधता संरक्षण, सामाजिक एवं आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन तथा जल जमीन संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में समन्वित प्रयास किये है।
संस्थान विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं जैसे हिमालयी क्षेत्र के लोगों की आजीविका वर्धन, जैव विविधता संरक्षण, चीड की पत्तियों से विभिन्न सामग्रियों का निर्माण, औषधीय पादपों के उत्पादन के तरीकों को जनमानस तक पहुंचाना तथा पानी के स्रोतों के संरक्षण इत्यादि को धरातल पर उतारने हेतु प्रयासरत है।
निदेशक ने पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त का हिमालय क्षेत्र के विकास में दिए गए योगदान के बारे में बताया। साथ ही वैश्विक स्तर पर सतत विकास के 17 लक्ष्यों और संस्थान द्वारा उन पर किये जा रहे कार्यो से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में तटीय क्षेत्रों की भांति पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने की बात कही। उन्होंने संस्थान के दो वैज्ञानिकों को पद्मश्री पुरस्कार मिलने को संस्थान के लिए गौरवशाली बताया और शोध क्षेत्रों को इससे सीख लेने की बात कही।