सरोवर नगरी में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप का दुष्प्रभाव झील के साथ ही शहर के प्राकृतिक जलस्रोतों पर भी पड़ा है। आलम यह है कि प्राकृतिक जलस्रोत सूखने या इन स्रोतों में पान की मात्रा कम होने से झील की बारिश पर निर्भरता बढ़ गयी है। झील में लगातार बढ़ती गाद समस्या को और गंभीर बना रही है।
ऐसे में विशेषज्ञों ने अब शहर के प्राकृतिक जलस्रोतों के पारंपरिक तरीके से रखरखाव करने की पुरजोर पैरवी की है। पालिका की ओर से 11 जलस्रोतों के जीर्णोद्धार के लिए जल संस्थान को एक साल पहले दिया था, अब बमुश्किल जल संस्थान निविदा प्रक्रिया पूरी कर सका है और अप्रैल पहले सप्ताह से काम शुरू कर रहा है।
उधर, झील में लगातार बढ़ती गाद समस्या को और गंभीर बना रही है। ऐसे में विशेषज्ञों ने अब शहर के प्राकृतिक जलस्रोतों के पारंपरिक तरीके से रखरखाव करने की पुरजोर पैरवी की है। चेताया है कि यदि समय रहते यह नहीं किया गया तो इसका प्रभाव झील के अस्तित्व पड़ेगा और पर्यटन सीजन में इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे। झील के जलागम क्षेत्र में पाए जाने वाले प्राकृतिक स्रोत ना केवल भूगर्भीय संरचना तंत्र को मजबूत बनाते हैं बल्कि इन स्रोतों के उपयोग के बाद शेष जल से झील रिचार्ज होती है।
1872 के मानचित्र में सूखाताल क्षेत्र में आठ कुओं की जबकि इसी क्षेत्र में 1937 में सदानीरा चार कुओं की उपस्थित दर्ज है, इसके अलावा स्लीपी होलो में 1899 में प्राकृतिक स्रोत बताया गया है। परदाधारा, स्प्रिंग धारा व भाबर हाल के निकट प्राकृतिक स्रोत में गर्मी में केवल 25 प्रतिशत ही कमी होती है।
बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, अतिक्रमण आदि की वजह से भाबर हाल कम्पाउंड, एटीआइ के पास, पालिका इंटर कालेज के समीप, विलायत काटेज के बगल में, मेट्रोपोल होटल परिसर में प्राकृतिक जलस्रोत अस्तित्वहीन या समाप्तप्राय हो चुके हैं।जिन स्रोतों में पानी की मात्रा भरपूर हैं, वहां भी देखरेख नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार शहर की परिधि में 22 प्राकृतिक जलस्रोत हैं, जिनका संरक्षण जरूरी है। यदि इनका संरक्षण नहीं किया गया तो इसका सीधा प्रभाव पर्यटन पर पड़ेगा।